Asli Guru Kaun

असली गुरु कौन Asli Guru Kaun कहानी

आज हम हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी ( hindi motivational story ) में असली गुरु कौन ( Asli Guru Kaun ) के बारे पढेंगे। परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम हैँ। यह परिवर्तन ही हैँ जो व्यक्ति केजीवन में ताज़गी और नवीनता के एहसास को बनाये रखता हैँ।

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैँ। यह सभी परिवर्तन आपके जीवन पर विशेष प्रभाव ड़ालते हैँ।

यही प्रभाव आपके जीवन के अद्धभुत और अनमोल अनुभव बन जाते हैँ। यही अनुभव मार्गदर्शक बनकर आपका सम्पूर्ण दृष्टिकोण ही बदल ड़ालते हैँ।

आपके दृष्टिकोण में आये परिवर्तनआपके व्यक्तित्व के साथ जीवन को भी सम्पूर्ण रूप से बदल ड़ालते हैँ।

आपके जीवन, व्यक्तित्व और दृष्टिकोण को बदलने वाली ऐसी ही एक कहानी हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी की टीम आज आपके लिए लाइ हैँ।

उम्मीद करते हैँ की यह कहानी पसंद आएगी और जीवन अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगी।

कहानी

यह बात उस समय की हैँ जब आशीष वर्मा शिक्षा समाप्त करने के बाद जीवन आगे बढ़ रहा था।

वह एक आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार से सम्बन्ध रखता था। पिता जी, श्री राजीव वर्मा, देश की फ़ौज में कर्नल के पद से मात्र एक वर्ष पूर्व ही सेवानिवृत हुए हैँ। माता जी, श्रीमती कविता वर्मा, एक अनुभवी और विख्यात मनोविज्ञान विशेषज्ञ हैँ।

परिवार में आशीष के अतिरिक्त एक बड़ा भाई अखिलेश और एक छोटी बहन मानस्वी भी हैँ।

राजीव के पिता जी के साथ सम्बन्ध कुछ मधुर नहीं थे। ऐसा इसलिए था क्यूंकि राजीव वर्मा एक फ़ौजी  अफसर थे और स्वभाव से कठोर व्यक्ति थे। लेकिन मानसिक मोर्चे पर वह पुरानी पीढ़ी के विचारों वाले व्यक्ति थे।

बड़ा भाई अखिलेश एक स्मार्टफोन बनाने वाली एक प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कम्पनी में निर्देशक (डायरेक्टर) के पद पर तेनात हैँ।

अगर मानस्वी की बात करें तो वह तेइस वर्ष की हैँ और जीवन के हर पल को और हर संघर्ष को एक भिन्न ही दृष्टिकोण से देखती हैँ।

यदि कुल मिलाकर मानस्वी को अपनी मां का ही नवीन रूप कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति ना होंगी। अपनी मां की भांति किसी के मन को पढ़ने की कला अपनी मां की भाँती ही पारंगत हैँ।

दूसरी और आशीष एक चौबीस वर्ष का एक बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैँ जोकि एक वाइल्ड लाइफ फोटोफ्रापगर बनना चाहता हैँ लेकिन उसके पिताजी उसे अपनी भांति भारतीय फ़ौज में एक बड़ा अफसर बनते देखना चाहते हैँ।

इसी  बात को लेकर राजीव वर्मा आशीष को प्रसतिदिन क्रोध से भरकर डांट देते हैँ। अब फ़ौजी अफसर रहने के कारण घर में सभी उनके क्रोध डरते हैँ। घर में मात्र उनका ही सिक्का चलता हैँ। इसलिए उन्होंने परिवार के सभी सदस्यों को आशीष की आर्थिक सहायता करने से मना कर रखा था ताकि आशीष किसी भी प्रकार भारतीय फ़ौज की नौकरी करने के लिए मान जाए।

इस कारण परिवार में से कोई भी आशीष की आर्थिक सहायता चाहकर भी नहीं कर पाता था। ऐसा नहीं हैँ के आशीष कमाता नहीं था। वह एक लोकल विद्यालय में बच्चों को ग्राफ़िक डिज़ाइन की कला सिखाने का काम करता था। इसके बदले उसे प्रतिमाह पंद्रह हज़ार रुपये का वेतन मिलता था। इतनी काम तनख्वाह में आशीष अपना गुज़ारा नहीं कर पाता था तो फिर सपने पूरे करना तो उसके लिए बेहद कठिन था। 

समय बीतता गया और हर गुज़रते लम्हे के साथ आशीष के अंदर की वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनाने की इच्छा अब और भी बलवान होती जाए रही थी। अब धीरे-2 यह इच्छा पूर्ती ना हो पाने के कारण मानो जीता जागता चलता फिरता एक ऐसा जवालामुखी बनता जा रहा था जो किसी भी समय फट सकता था। अब हंसमुख वाला आशीष का स्वभाव भी कुछ चिड़चिड़ा हो गया था।

आये पिता और पुत्र का इसी बात को लेकर विवाद होता ही रगा। परन्तु अब यह विवाद प्रतिदिन झगडे का रूप धारण करने लगा था।

पिछले वर्ष से उस बात को आशीष नी मां और बहन लगातार भाँप रहे थे। कुछ मोकों पर तो बात बहुत बढ़ जाती थी। कई बार तो मां और बहन को बीच बचाव करना पड़ता और पिता जी के गुस्से का सामना करना पड़ता था।

एक दिन अचानक आशीष के पिता जी को ऑस्ट्रेलिया में रह रहे उनके बचपन के मित्र सत्यप्रकाश दूबे जी का फोन आया। दोनी में बहुत लम्बी बात चली और फोन कटने बाद राजीव बहुत प्रसन्न लग रहे ठगे। उजे चेहरे की ख़ुशी देखकर ऐसा लग रहा था को मानो जैसे संसार की सारी खुशियां उन्हें एक ही पल में मिल गयी हों।

इतनी प्रसन्नता उनके मुख पर देखकर आशीष की मां से रहा नहीं गया। कविता ने हैरानी भरे स्वर में पूछ ही लिया…

कविता: क्या बात हैँ राजीव? आज से पहले तुम्हे कभी इतना खुश नहीं देखा। तुम तो ऐसे खुश हो रहे हो जैसे कोई बड़ी बात हो गयी हो। बात क्या हैँ?

राजीव: अरे कविता बात ही कुछ ऐसी हैँ की तुम भी सुनोगी तो ख़ुशी के मारे पागल हो जाओगी और नाचने लगोगी। बस यु समझो के भगवान् ने हमारी झोली खुशियों से भर दी हैँ।

कविता: अरे अब बताओगे भी की बस पहेलियाँ ही बुझाते रहोगे?

राजीव: कविता तुम्हे मेरा वो पुराना मित्र तो याद होगा जो हम दोनों के विवाह की घोड़ी लेकर भाग गया था।

कविता: कोनसा मित्र?

राजीव: अरे कविता वही जो ऑस्ट्रेलिया जाकर बस गया था. में सत्यराकेश दुबे की बात कर रहा हूं।

कविता: अरे हाँ. याद आया। उनका बड़ा बेटा सिविल इंजीनियर हैँ ना?

राजीव: अरे हाँ वही। कविता उसी का फ़ोन था। कह रहा था की अपने उसी बड़े बेटे अंकुश को लेकर वह ागके हफ्ते भारत आ रहा हैँ।

कविता: ठीक हैँ। और तुम इसपर इतना खुश क्यों हो?

राजीव: अरे बात ही कुछ ऐसी हैँ पगली। में इसलिए खुश हूँ क्यूंकि वह फोन पर मानस्वी के बारे में पूछ रहा था और कह रहा था की वो हमारी बचपन की दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलना चाहता हैँ। यानि के वो अंकुश के लिए हमारी मनावी का हाथ मांग रहा हैँ।

कविता: सच? है भगवान् मुझे विश्वास नहीं हो रहा हैँ। हमारी मनावी तो राज करेंगी। बहुत ही भला और संपन्न परिवार हैँ।

राजीव: मेने हाँ कर दी हैँ।

कविता: बहुत ही अच्छा किया। में अभी मानस्वी को बताती हूं।

इतना कहकर कवुता मानस्वी के कमरे में चली जाती हैँ। दूसरी और राजीव अपने कॉलेज से वापिस आता हैँ और राजीव से आते ही 1000 रुपये मांगता हैँ यह कहकर को कॉलेज से आते समय मोटरसाइकिल का एक्सीडेंट हो गया हैँ। उसकी मुरम्मत के लिए चाहिए।

इतना सुनते ही राजीव का पारा सातवे आसमान पर चढ़ जाता हैँ।

राजीव: आ गया मेरी जान का दुश्मन। ज़िन्दगी में समय बर्बाद करने और दुर्घटनाएं करने अलावा इस निकम्मे को कोई और काम नहीं।

आशीष: आपने कुछ कहा पिता जी?

राजीव: अरे अच्छा होता की तू इस दुर्घटना में मर जाता। कम से कम धरती का कुवह तो बोझ काम होता।

आशीष: ऐसा क्या कर ऐया अब मैंने? आप मुझे धरती पर बोझ मानने लगे हैँ।

राजीव: इसी बात का तो रोना हैँ की अभी तक तूने किया ही कुछ नहीं हैँ। ोाता नहीं कौनसी वो मनहूस घड़ी थी जब तेरे जैसी निकम्मी औलाद दे दी भगवान् ने। ना जाने किस जन्म के पापों की सजा का नतीजा हैँ तू।

आशीष: क्या कहा आपने? पापों का नतीजा? चलिए। कुछ तो माना आपने। औलाद तो आपने कभी माना ही नहीं मुझे लेकिन अपने पापों की सजा का नतीजा होने का दर्जा देदिया हैँ आपने। मेरे भी विचार कुछ ऐसे ही हैँ।

राजीव : तू फ़ौज की नौकरी क्यों नहीं कर लेता? 28 साल का हो गया हैँ लेकिन फिर भी एशार्मों की तरह बाप से पैसे मांगता फिरता हैँ।

आशीष: आप पैवे नहीं देना चाहते हैँ तो मत दीजिये। में आपको पहले भी यह बात कह चूका हूं की ना तो फ़ौजी नौकरी में मेरी कोई रूची हैँ और ना ही यह मेरे बस की बात हैँ। अब आप इस बात को समझ लो अच्छी तरह क्यूंकि में अब यवह बात दोबारा नहीं कहूंगा।

इतना सुनते ही राजीव का करोध होनी सभी सीमाएं लांघ गया और राजीव ने अपनी सीट से खड़े होकर आशीष को दो ज़ोरदार तमाचे मार दिए।

राजीव: मुफ्त का ख़ाता तो था ही और आज जुबां भी लड़ाने लगा हैँ। तेरी इतनी हिम्मत के तू मुझसे ऐसे बात करेगा। कान खोलकर सुनले अगले हफ्ते मेरे दोस्त के बेटे से मानस्वी की सगाई होने वाली हैँ। में नहीं चाहता की ऐसी शुभ घड़ी पर तेरे जैसे निकम्मे मनहूसे कर कामचोर का साया उसपर पड़े। निकल जा मेरे घर से।

शोर सुनकर मानस्वी, कविता और अखिलेश बाहर आते हैँ और पिता जो समझाने का प्रयास करते हैँ। लेकिन आज तो मानो राजीव के क्रोध का कोई अंत ना था।

राजीव: कान खोलकर सुन तुम सभी। तुम सब के लाड प्यार ने इसे इतना बिगाड़ दिया हैँ की ना तो यह जीवन में कुछ करना चाहता हैँ और ऊपर मुझे यानि बाप के सामने जुबां लड़ाने की हिम्मत भी आ गयी हैँ इसमें.

इतना सुनकर आशीष का करोध भी फुट पड़ता हैँ।

आशीष: चला जाता हूं। लेकिन याद रखना की आपको एक दिन इस बात का एहसास होगा की आपने क्याखोटा हैँ।

इतना कहकर आशीष सोफे से उठता हैँ और अपने कमरे में चला जाता हैँ। अपना कैमरा और सामाना बाँधकार बैठ जाता हैँ।

कविता, अखिलेश और मानस्वी उसे भी समझने का प्रयास करते हैँ। परन्तु आज तो मानो आशीष ने भी ठान लिया था की आज घर छोड़ ही देगा।

आशीष: मां में जानता हूं की पिता जी मुझसे बहुत प्यार कर्रे हैँ. शायद उनसे मेरा संघर्ष देखा नहीं जाता। इसीलिये मुझे बार बार फ़ौज की नौकरी के लिए अप्लाई करने को कहते हैँ। मेरा मन नहीं मानता किसी की औलाद को गोली से उड़ाने का। में किसी का क़त्ल करने के लिए नहीं बना हूं मां। किसी के बुढ़ापे की लाठी तोड़कर में कैसे खुश रह पाउँगा? क्या जवाब दूंगा जब मेरी बन्दूक की गोकि से किसी का भाई, पुत्र, पति या बाप मरेगा? बताओ अखिलेश भैया। क्या तुम मुझे किसी का क़ातिल बनते हुए देखना चाहोगी मां? में कुछ ऐसा करना cahahta हूं जिससे मुझे ज़्यादा पैसा भले ही ना मिले लरन्तु मेरे मन को और मेरी आत्मा को ख़ुशी ज़रुरो मिले। ऐसा तभी हो सकता हैँ जब में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनुगा। मुझे आज जाना ही होगा मान। में लौटकर ज़रूर आऊंगा।

इतना कहकर आशीष अपना सामान उठाकर चल देता हैँ और घर का त्याग कर देता हैँ।

इतनी ख़ुशी जे बाद अचानक ऐसा माहौल हो जाने से मानो घर में मातम सा छा गया हो।  मातम भी ऐसा की जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गयी हो।

समय बीतता गया। मानस्वी की सगाई भी हो गयी और वो शादी करके ऑस्ट्रेलिया भी चली गयी। लेकिन मन ही. मन वो आशीष को ज़रूर याद करती थी। करती भी क्यों ना? आशीष ने उसको प्यार ही इतना किया था की जिस चीज पर हाथ रख देती थी  वही चीज उसे आशीष ले देता था बचपन में आशीष वो चीज उसे अवश्य लाकर देता था। उसे आशीष पर पूरा भरोसा था की एक दिन वो सफल अवश्य होगा। यही सोचकर मानस्वी अपने दुखी मन को खुश कर लेती थी।

समय तेज़ी के साथ आगे बढ़ता गया और बहुत कुछ बदलता गया। मानस्वी की शादी को लगभग अब 5 साल हो चुके थे और वह एक बच्चे की मां बन चुकी थी। अंकुश और मानस्वी अब एक प्यारी सी गुड़िया के माता पिता थे। बच्ची कानाम दोनों ने मिलकर बहुत ही प्यार से प्रेरणा रखा।

 धीरे -2 प्रेरणा अब बड़ी हो रही थी। बड़ी होने के साथ साथ प्रेरणा अब घुटनो के बल चलना शुरू कर चुकी थी और कुछ शरारती भी हो गयी थी। सब कुछ बदल रहा था बस आशीष के संघर्ष को छोड़कर।

आशीष का ज़िन्दगी के साथ संघर्ष आज भी वैसा ही चल रहा था जैसा की मानसवीं की शादी से पहले चक रहा था। परन्तु कुछ अंतर तो आया ठगा आशीष के जीवन में। समय के साथ उसकी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का हुनर कुछ बेहतर हो गया था और कुछ काम भी मिक जाता था। लेकिन फिर भी आशीष को अपने गुज़ारे के लिए अभी भी कंप्यूटर सिखाने की नौकरी करनी पडती थी।

उधर मानस्वी अंकुश के साथ प्रेरणा को लेकर शादी के बाद पहली बार भारत आने के के लिए मनाती हैँ। दोनों अगले हफ्ते की फ्लाइट पकड़कर भारत आ जाते हैँ।

मानस्वी, अंकुश और प्रेरणा का भारत आना राजीव, कविता और अखिलेश के लिए एक खुशनुमा पल था। सभी बहुत खुश थे उनके आने से और राजीव तो जैसे इस ख़ुशी को संभाल ही नहीं पा रहे थे। राजीव अपना पूरा समय प्रेरणा को देते और सारा दिन उसी से खेलते रहते। लेकिन मानस्वी की आँखें तो मानो जैसे हर वक्त आशीष को ढूंढ़ती रहतीं।

ढूंढती भी क्यों नहीं? आखिर आशीष उसका भाई हैँ। पांच वर्ष हो चुके थे उसे अपने भाई को देखे हुए और उसकी शादी में भी तो मौजूद नहीं था वह।

लेकिन अब उसका धैर्य जवाब दे रहा था। पिताजी के स्वाभाव को वो अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए उसने पिताजी इस इस बारे में बात करना सही नहीं समझा। परन्तु उसने नज़र बचाकर अखिलेश से पुछा तो आशीष का पता उसे मिल गया।

वह पिछले पांच साल से शहर के बाहर एक गांव में रह रहा था क्यूंकि वहां मकान का किराया काम था।

मानस्वी कुछ ही समय में तैयार होकर गाडी निकलवाती हैँ और प्रेरणा को लेकर आशीष से मिलने चल पडती हैँ।

राजीव ने अखिकेश को जब मानस्वी की इस प्रकार बाहर जाने के बारे में पुछा तो अखिकेश ने बात को घुमा दुआ और जहा की उसे प्रेरणा के किये कुछ खिलोने खरीदने थे। इसीलिए वह मेरी गाडी लेकर बाज़ार गयी हैँ।

लेकिन राजीव तो पिता थे। अपने बच्चे का झूठ पकड़ना जानते थे। अखिलेश की आँखों देखकर राजीव समझ गए की अखिलेश झूठ बोल रहा हैँ। अब राजीव भी समझ गए थे की मानस्वी इतने सालों बाद भारत आयी हैँ और अपने भाई से मिलने गयी हैँ। राजीव ने भी बीरा नहीं माना क्यूंकि एक पिता होने के नाते उनके दिल में भी कहीं ना कहीं आशीष के लिए प्रेम आज भी था। वह समझ सकते थे की जब भाई अपनी बहन की शादी में मौजूद ना हो तो एक बहन के दिल में क्या भावनाएं उमड़ती हैँ। आखिर वो भी तो इस अवस्था से गुज़रे थे जब उनकी खुद की छोटी बहन की शादी में वह खुद शामिल नहीं हो पाए थे क्यूंकि उस वक्त वह बॉर्डर पर तेनात थे।

दूसरी और मानस्वी एक घंटे का सफर करके आशीष के घर पहुँचती हैँ और उसे देखकर आशीष एकदम से भौचक्का रह जाता हैँ। दोनों ख़ुशी के मारे गले मिकते हैँ और मानस्वी आशीष को प्रेरणा से मिकती हैँ।

मानस्वी : आशीष भैया क्या हाल बना रखा हैँ यह? में तो अपने सुन्दर से आशीष भैया से मिलने आयी थी। पर अपने तो अपनी हालत ख़राब कर रखी हैँ। भोजन नहीं करते क्या?

आशीष : अरे नहीं पगली। में बिल्कुल ठीक हूं। मुझे कुछ नहीं हुआ। यह तो घर की सफाई कर रहा था तो इसीलिए यह फटे हुए गंदे कपडे पहन रखे हैँ। पहले से ज़यादा कमाता हूं और समय पर पूरा भोजन भी करता हूं।

मानस्वी: हमें याद करते हो या नहीं?

आशीष: अरे पगली तू तो मेरे दिल का टुकड़ा हैँ। तुझे कैसे भूल सकता हूं में?

मानस्वी : में नहीं मानती। आप तो मेरी शादी में भी नहीं थे. अगर आप याद करते तो अखिकेश भैया से मेरा या अंकुश का नंबर लेकर पांच साल में काम से काम एक फ़ोन तो ज़रूर करते। आपको तो यह भी नहीं पता की आप एक प्यारी सी नन्ही सी परी के मामा भी हैँ।

मानस्वी के इतना कहने की देर थी की आशीष का ध्यान पास पड़ी कुर्सी के समीप ज़मीन पर खेल रही प्रेरणा पर पड़ी। उसे देखकर आशीष चौंक गया और ख़ुशी के मारे उछल पड़ा।

आशीष: क्या मानस्वी? तुम सच बोल रही हो? में मामा बन चूका हूं? अरे में भी कितना मूर्ख हूं जो अपनी बहन की गॉड में इतनी प्यारी बच्ची देखकर भी यह समझ नहीं पाया की में मामा बन गया हूं।

अब दोनी भाई बहन बातें करने कागते हैँ और बातों ही बातों में मानस्वी आशीष को उसके वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनने के सोने के बारे ने पूछती हैँ।

आशीष उसे कहता हैँ उसने वह सपना त्याग दिया हैँ। ऐसा जवाब सुनकर वह हैरान हो जाती हैँ क्यूंकि जहाँ तक वह आशीष को जानती थी वो कभी हार नहीं मानता था!

मानस्वी: पर क्यों भैया? वो तो आपका सपना था। आपने तो उस सपने के लिए पिताजी से कितने साल लड़ाई भी लड़ी और घर भी छोड़ा। तो फिर आप हार कैसे मान सकते हैँ? मेरे भैया हार मानने वालों में से नहीं थे।

आशीष: मानस्वी ज़िन्दगी बहुत बेरहम होती हैँ। शायद पिताजी सही कहते थे। यदि वक्त रहते उनकी बात मान ली होती तो आज में अच्छा कमा रहा होता और मेरे पास अपना एक घर, गाडी, परिवार सब कुछ होता। आज में एक इज़्ज़तदार फ़ौजी अफसर होता। सपने को पूरा करने के चक्कर में क़र्ज़ में डूबा हूं और शर्म के मारे पिताजी से मदद भी नहीं मांग सकता क्यूंकि उनका अपमान करके ही घर से निकला था। शायद यह मेरे कर्मों की सजा हैँ मानस्वी।

मानस्वी: भैया आप अपने मन से अपराधबोध निकाल दो। आपके और पिताजी जी के बीच जो भी हुआ वो इसलिये हुआ क्यूंकि आप दोनों एक दुसरे से पत्र करते हो। इंसान गुस्सा भी उसी से करता हैँ जिस से वह प्यार करता है। आप पिताजी से बात तो करो। वो पिता हैँ हमारे। मुझे उनके आखों में आज भी आपके लिए प्यार दीखता हैँ। बस वो किसी को बताते नहीं हैँ। में अपने भाई को हार नहीं मानने दूँगी।

आशीष: क्या मतलब?

मानस्वी : मुझे वुश्वास हैँ की आप एकदिन सफल वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनोगे।

आशीष : वो कैसे?

जैसे ही आशीष ने येगा पुछा तो मानस्वी की नज़र अचानक दूर खेल रही प्रेरणा पर पड़ी। उसने देखा की प्रेरणा एक टेबल का सहारा लेकर पहली बार अपने खुद के पैरों पर खड़ी होने का प्रयास कर रही थी।

 यह देखकर मानस्वी की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। वो ऐसे खुश हो रही थी मानो जैसे वह अपना खुद का  बचपन देख रही हो।

इतने में प्रेरणा ने टेबल को छोड़ दिया और लड़खड़ाते हुए अपना जीवन का पहला कदम उठाकर अपनी मां की और चल पड़ी।

रास्ते में प्रेरणा लगभग दस बार लड़खड़ाई

होंगी और संतुलन खोकर धरती पर गिरी। परन्तु हर बार वह उठती और खड़े होकर अपने कदमो से धरती मापती हुई आगे बढ़ती और किसी तरह अपनी मां से चलकर मिलने में सफल हो गयी। 

यह देखकसर मानस्वी के मन में एक विचार आया। इसने इस पल का उपयोग उसने आशीष को प्रेरित करने का सोचा।

मानस्वी : भैया आप एकबार फिर से प्रयास क्यों नहीं करते? मुझे आप पर पूरा विश्वास हैँ की आप एकदिन एक सफल वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ज़रूर बनोगे।

आशीष : रहने दो मानस्वी अब कुछ नहीं हो सकता।

मानस्वी : नहीं आशीष भैया में आपको हार नहीं मानने दूँगी। आपने अपनी भांजी प्रेरणा को देखा? वो दस बार गिरी पहला कदम उठाते वक्त परन्तु हर बार वह उठी और आगे बड़ी और मुझ तक पहुंचने में सफल रही। क्यों भैया? क्यों? ज़रा सोचो की अगर वो हार मान लेती तो क्या वो अपना पहला कदम उठा पाती? क्या वह वहां से चलकर मुझ तक आ पाती?

आशीष : मानस्वी किसी के द्वारा पहला कदम उठाना आसान हैँ। जीवन में बड़े होकर अपना सपना पूरा करना बहुत कठिन होता हैँ।

मानस्वी: भैया सब मानसिक स्थिति का खेल होता हैँ। हमारे ग्रंथों में भी लिखा और महापुरुषों ने भी कहा हसि की मन के हरे हार हैँ ओरमांझी के जीते जीत हैँ। आप आप मत देखिये की प्रेरणा द्वारा पहला कदम उठाना कोई बड़ी बात हैँ या नहीं। कुदरत के सिखाने के और निराश व्यक्ति को प्रेरित करने के अपने निराले तरीके होते हैँ। सोचिये अगर ईश्वर चष्टे तो प्रेरणा अपना पहला कदम अस्ट्रेलिया की उस धरती उठा सकती थी जहा उसका जन्म हुआ हैँ। क्यों मेरा तीन या चार दिन में भारत आने का अंकुश के साथ प्रोग्राम बना? क्यों में अनायास ही प्रेरणा को लेकर बिना पिताजी को बताये आपसे मिलने चली आयी?  मुझे तो आपके निवास पता नहीं मालूम था। क्यों प्रेरणा ने अपना पहला कदम आपके नेत्रों के समक्ष उठाया और गिरती पडती मेरे गले मिलने में कामयाब रही? क्यों भैया क्यों? सोचिये एकबार। यह ईश्वर का इशारा हो सकता हैँ आपके लिए। यह भी तो हो सकता हैँ की भगवान आपकी परीक्षा ले रहे हो और आपको आपके सपने के मार्ग में आने वाली होंसला तोड़ने वाली कठिनाइयों को पराजित करने के लिए तैयार कर रहे हों। यह ईश्वर का इशारा है आपको समझने के लिए की सफल वही होता हैँ जो लड़खदाट्स हैँ, गिरता हैँ लेकिन हार नहीं मानता हसि और वापिस उठता हैँ और तब तब तक प्रयास करता हैँ जब तक वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेता हैँ। इसलिए उठिये और ईश्वर के इस इशारे को समझो। भैया एक बार मेरे कहने पर अपनी नन्ही मासूम भांजी के लिए मेरी बात मानलो। तुम्हे ईश्वर का वास्ता हैँ की मेरी बच्ची की नन्ही सी झोली में यह ख़ुशी डाल दो भैया। मैंने आजतक आपसे कुछ नहीं माँगा ज़िन्दगी में। भैया आज में आपसे पहली बार कुछ मांग रही हूं। उठो और एक आखिरी बार पूरा दम लगादो वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बनने के लिए।  मुझे और मेरी औरकुछ नहीं चाहिए आपसे भैया। हम आपको सफल और खुश देखना चाहते हैँ। पिताजी की भी यही ख्वाहिश थी।

मानस्वी के समजगाने पर आशीष एक बार प्रेरणा की और देखता है और कुछ देर सोचता है। कुछ समय सोचने के बाद आशीष अपनी कुर्सी से खड़ा होता है।

आशीष: अरे पगली तू आज भी वही ज़िद्दी छोटी प्यारी बच्ची है। तू विवाह के बाद ऑस्ट्रेलिया जाकर भी नहीं बदली। तू अच्छी तरह जानती हैँ की तेरा यह भाई तेरी आँखों आँसू नहीं देख सकता। रो मत पगली। मैं तुझे आज भी बहुत प्यार करता हूं। तू मेरे आगे झोली मत फैला बहना। अपने भाई से कुछ भी मांगना तेरा अधिकार है। आज मैं तुझसे वादा करता हूं की कभी हार नहीं मानुगा। अगले एक साल मैं तुझे एक सफल वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बनकर दिखाऊंगा।

उसदिन दोनों भाई बहन अपना दुख सुख एक दुसरे से साँझा करते हैँ। शाम को मानस्वी घर लौट जाती हैँ और दो दिन बाद मानस्वी और अंकुश प्रेरणा को लेकर ऑस्ट्रेलिया वापिस चले जाते हैँ। लेकिन आशीष का व्यक्तित्व बदल जाता है।

 वह एकबार फिर मेहनत शुरू करता है और इसबार उसकी मेहनत रंग लाती है। उसके वाइल्डलाइफ फोटो देशके एक प्रमुख मैगज़ीन को पसंद आ जाते हैँ। यही वो अवसर था जिसकी उसे तलाश थी।

आशीष और मन लगाकर मेहनत करता हैँ और धीरे-2 उसका शुमार देश के नामी वाइल्डलाइफ फोटोग्राही विशषज्ञयों मैं होने लगता हैँ। कुछ वर्षों बाद ऑस्ट्रेलिया से एक पत्रकार आकर उसका इंटरव्यू लेता हैँ जोकि वुश्व मैं बहुत सुर्खियां बटोरता है।

एकदिन मानस्वी अचानक ही वो इंटरव्यू देखकर अचंभित हो जाती है। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता है की जो वो देख रही है वो सच हैँ या कोई सपना है।

वो बहुत खुश होती हैँ और आशीष को फोन करके बधाई देती है।

तो मित्रो अब आप  यह बताओ की असली गुरु कौन ( Asli Guru Kaun ) गई? आप जो उम्र मैं बड़े हैँ या फिर बच्चे जिनके माध्यम ईश्वर आपको फर्श से उठाकर अर्श पर पंहुचा देते हैँ? सोचिये एकबार इस विषय मैं गहराई से। जीवन के प्रति और जीवन मैं आने वाली कठिनाइयों के प्रति आपकी सोच ही बदल जाएगी।

दृष्टिकोण बदल लीजिये आपका सम्पूर्ण जीवन ही बदल जायेगा। असल मैं आपके परिवार मैं ता आपके आसपास बच्चों के रूप मैं निराले ईश्वस्र ही आपके असली गुरु बनकर मौजूद हैं। इसलिए बच्चे जो भी करें या कहें उनकी भोली गतिविधियों को और बातों को ईश्वर का संकेत समझें और लगातार प्रयास करते रहें सफलता के लिए। एकदिन सफलता आपकी झोली मैं होंगी और संसार आपके क़दमों में होगा।

तो समझें असली गुरु कौन ( Asli Guru Kaun )

हैँ या नहीं? कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइये। 

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