जीवन एक संघर्ष हैँ। संघर्ष ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करता हैँ। ऐसी ही एक हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) आज हम आपके लिए लेकर आये हैँ। सरदार कश्मीर सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) के जीवन के संघर्ष और सफलता की अविश्वसनीय कहानी।
जो एक बात इस कहानी को पढ़कर एक बात समझ में आएगी की हमें अपने जीवन के संघर्ष को एक अलग दृष्टिकोण से देखा जाये तो सफलता शीघ्र मिल जाती हैँ।
सरदार कश्मीर सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) की हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी :
तो आइये आपका और कीमती समय व्यय किये बिना इस कहानी को शुरू करते हैँ।
जन्म और माता पिता:
तो बात उस समय की हैँ जब देश अंग्रेज़ों का गुलाम था।बात हैँ 1919 जब शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर महान महाराजा श्री रणजीत जी के समय बाबा साहिब जी बेदी जी द्वारा स्थापित बेदियां गांव में एक बालक का जन्म हुआ। आज वह बेदियाँ गांव पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब प्रान्त के कसूर ज़िले का भाग हैँ।
उस बालक के पिताजी का नाम सरदार निरंजन सिंह बेदी जी और माता जी का नाम सरदारनी कुशाल कौर बेदी था। बालक बहुत ही सुन्दर और तेजस्वी था। उसकी सुंदरता सोर्सभावित होकर माता और पिता ने उसका नाम कश्मीर सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) रखा।
सरदार जी का बचपन:
बालक बचपन से ही मेहनती था। समय अपनी गति से बीतता गया और बालक बड़ा होता गया। थोड़ा बड़ा होने पर बालक को दूर गांव के एक विद्यालय में शिक्षा हेतु दाखिल करवा दिया गया। विद्यालय की घर से दूरी लगभग 9 मील थी।
समय पर विद्यालय पहुंचने के लिए वह प्रतिदिन सूर्योदय से पहले घर से निकलता और मार्ग में कोई जल की व्यवस्था नहीं होती थी। मात्र एक ही वृक्ष था जिसकी छाव में कुछ देर छाव में बैठा जा सकता था।
यही बल्कि वह प्रतिदिन विद्यालय जाने से पहले अपने पिताजी के साथ खेतोँ में कार्य भी करवाता था।
परिवार में उसके आठ से नौ भाई बहन और भी थे। माता पिता को सभी बच्चे प्रिया थे। लेकिन माता पिता, दैनिक कार्य और बाकी भाई बहनो के प्रति ज़िम्मेदारी का एहसास होने के कारण छोटी उम्र से ही माता पिता को अति प्रिया था।
जवानी की शुरुआत और पहली नौकरी:
समय अपनी गति से आगे बढ़ता गया और कश्मीर सिंह ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) अब बालक से जवानी की देहलीज़ पर कदम रख चूका था। उसके माता और पिता भी अब जीवन के अंतिम दौर में प्रवेश कर चुके थे।
घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे। इसलिए घर के हालात को देखते हुए कश्मीर ने नौकरी करने का निर्णय लिया। यहीं से शुरुआत होती हैँ सरदार कश्मीर सिंह ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) के प्रेरणादायक जीवन की गाथा।
बहुत कोशिश के बाद एक नौकरी हाथ लगी और पास के जंगल में लकड़ी काटने का कार्य मिला और महीने की तीस रुपये तनख्वाह लगी। यह नौकरी कश्मीरी सिंह के जीवन की गाथा को हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) बनाने की इश्वर द्वारा आरम्भ था।
लकड़ी काटते हुए कई बार हाथ फट जाते और कांटे भी चुभ जाते थे हाथों में। जहाँ तक मासिक वेतन की बात थी तो वह परिवार वालों को दे दिया जाता था मालिक द्वारा।
यहाँ तक तो सब ठीक था लेकिन दिक्कत यह थी के वेतन परिवार के हाथ में दिया जाता था और कश्मीर को भोजन बनाना नहीं आता था।
ऐसे में कई बार उसे भूखा भी रहना पड़ता था। उसकी ऐसी दशा देखकर उसके साथियों को अच्छा ना लगता था।
इसीलिए एक दिन उसके कुछ साथी कामगारों ने मिलकर मदद करने का निर्णय लिया और उसे भोजन पकाना सिखाया।
फलस्वरूप अब सरदार जी अपने लिए कुछ भोजन पकाने योग्य हो गए। हलाकि अभी भी उसे पकाने की कला में दक्षता हासिल नहीं हुई थी। जिस कारण जैसा भी भोजन वह पका पाता उसी को खाकर संतोष कर लेता और ईश्वर का धन्यवाद करता।
खाना पकाना सिखने से जीवन कुछ आसान हो गया। अब उसे भूखा नहीं सोना पड़ता था।
विवाह:
समय किस तेज़ी से बीत जाता हैँ कुछ पता ही नहीं चलता हैँ। बदलते समय के साथ मनुष्य भी बदलता हैँ और उसका जीवन भी बदलता हैँ।
समय तो मानो जेडे पँख लगाकर उड़ गया और कब वो नन्हा सा बालक एक विवाह योग्य सुन्दर नवयुवक बन गया इसलिए बात का किसी पता ही नहीं चला।
घर में कश्मीर के चाचा जी अपने बेटे लिए रिश्ता लाये थे। कन्या विदेशी थी और गज़ब की खूबसूरत थी।
लड़के को कन्या पसंद थी परन्तु कन्या को लड़का पसंद ना आया। लेकिन कश्मीर के चाचा शायद कन्या के गुणों को परख चुके थे। इसलिए शायद वह चाहते थे की यह कन्या बेदी परिवार की ही बहु बननी चाहिए।
इसलिए उन्होंने मोके पर ही लड़की वालों से कुछ सब्र रखने की अपील की और सरदार निरंजन सिंह जी और कुशाल कौर जी को एक कोने में ले गए और समझाया की कन्या परिवार की इज़्ज़त को चार चाँद लगा देगी। इसलिए यदि कन्या को मेरा बेटा पसंद नहीं हैँ तो कोई बात नहीं।
अपना कश्मीर भी तो विवाह के योग्य हो गया हैँ। उसी के साथ विवाह की बात में लड़की वालों से करता हूं। दोनों मान गए।
चाचा जी किसी तरह लड़की वालों को कश्मीर सिंह को एक नज़र देखने के लिए मना लिया। ईश्वर की कृपा से लड़की को कश्मीर सिंह भा गया और कश्मीर सिंह को भी कन्या पसंद आ गयी। दोनों का रीति रिवाज़ के अनुसार विवाह कर दिया गया।
संघर्षों भरी हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी की शुरुआत
बहुत सारी बातें हैँ और घटनाएं हैँ जिन्होंने ससरदार जी की कहानी को हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story ) बनाया हैँ।
विवाह के पहले दिन ही कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना ना तो कन्या ने की थी और ना ही सरदार जी ने और ना ही माता और पिता ने। शादी के पहले दिन ही कन्या के सारे गहने भाई बहनो ने ले लिए। लेकिन कन्या ने एक शब्द ना बोला। बस चुपचाप सब्र रखकर पति के जीवन और संघर्षों का हिस्सा बन गयी।
माता पिता और भाइ की मृत्यु:
अभी विवाह को मुश्किल से तीन वर्ष ही हुए थे के माता और पिता का देहांत हो गया। अब परिवार में अकेले कमाऊ व्यक्ति के कारण सारी ज़िम्मेदारी कश्मीर पर आना पड़ी। उधर एक भाई को टीबी की बीमारी हो गयी तो दुसरे को बवासीर हो गयी।
इसी बीच छोटी बहन का सरदार जी ने विवाह कर दिया। परन्तु भाग्य को तो कुछ और ही मंज़ूर था। विवाह के कुछ समय बाद ही छोटी बहन के विवाहित जीवन में समस्याएं शुरू हो गयीं । जिससे तंग आकर वह घर लौट आयी। लेकिन सरदार जी ने छोटी बहन के विवाहित जीवन की समस्याओं का हल किया । यह समस्या अभी हल हुई थी की अचनाक से बड़े भाई का टीबी से देहांत हो गया।
लेकिन अभी तो कश्मीरी सिंह के गाथा के हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) बनने की असली शुरुआत तो अब हुई थी।
भारत – पाकिस्तान का बंटवारा और दुसरे भाई की मृत्यु:
अभी बड़े भाई का अंतिम संस्कार किये कुछ ही समय हुआ था की भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया। इसलिए बंटवारे में करोड़ों हिन्दू, सिख और मुसलमान मारे गए।
जिधऱ देखो उधर कत्लेआम और लाशें नज़र आती थी। ऐसे में इतने बड़े परिवार को सुरक्षित निकलना और भारत आना अपने आप में एक बड़ी परीक्षा थी।
लेकिन मुसीबत तब बढ़ गयी जब भारत आते वक्त बवासीर से बड़े भाई का भी निधन हो गया।
लेकिन कश्मीर और उसकी धर्मपत्नी सरदारनी रमिंदर कौर ने तब भी हिम्मत नहीं हारी और बड़े भाई का अंतिम संस्कार पूरे रीती रिवाज़ से किया।
बंटवारे बाद भारत आगमन:
किसी तरह भारत आ गए। लेकिन कश्मीर और उनकी पत्नी का असली इम्तिहान तो शायद ईश्वर अब लेने वाले थे। क्यूंकि माता पिता तो पाकिस्तान में ही जीवन भीग कर ईश्वर की शरण में जा चुके थे। दो बड़े भाई बीमारी से चल बसें थे और कुछ भाई और बहनें दंगे में बिछड़ गए थे।
ऊपर से नएं और अस्थिर हालातों में ना सिर छुपाने को छत थी और ना ही कोई रोज़गार था और नहीं जेब में कोई पैसा था। खेती वाली ज़मीन पाकिस्तान में ही छूट गयी थी।
अब दोनों पति और पत्नी के सामने एक तरफ जहाँ जीवन को नये सिरे से दोबारा शुरू करने की कठिन चुनौती थी तो वहीं दूसरी और बाकि भाइयों और बहनो के विवाह करने की ज़िम्मेदारी थी।
ईश्वर की कृपा से जो लोग पाकिस्तान में अपनी ज़मीन जायदाद खोकर भारत आये थे उनमें से बहुतों को भारत सरकार की और से ज़मीन आवंटित की जा रही थी।
ईश्वर की असीम कृपा हुई और जिनको ज़मीन मिली उनकी सूची में आदरणीय जी का नाम भी शामिल हो गया। फलस्वरूप भारत सरकार से कुछ ज़मीन मिलने से परिवार का भरण पोषण करना कुछ हद तक आसान हो गया।
थोड़े समय बाद सरदार जी ने एक छोटी-मोटी नौकरी भी हासिल कर ली। परिणामस्वरूप कश्मीर ने पढ़ाई आगे करने का निर्णय लिया।
नवजात बच्चे की मृत्यु:
सब कुछ ठीक हो रहा था। जीवन सही मार्ग की और आ रहा था। एक दिन सरदारनी रमिन्दर कौर ने कश्मीर सिंह को खुशखबरी दी की वो जल्दी ही पिता बनने वाले हैँ। इतने संघर्षों से भरे जीवन में आज पहली बार कोई ख़ुशी की खबर सरदार जी के कानो में पड़ी थी। यह खबर सुनकर बहुत खुश हुए की उछल कर अपनी पत्नी को ख़ुशी के मारे गले लगा लिया। सरदार जी की ख़ुशी तो ऐसे उमड़कर बाहर आ रही थी जैसे जीवन के संघर्षों से थककर हार चुके व्यक्ति में किसी ने नयी ऊर्जा और सफूर्ती का संचार कर दिया हो
लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही मंज़ूर था। कश्मीर सिंह और उनकी पत्नी की यह ख़ुशी को किसी की मानो बुरी नज़र लग गयी। बच्चा पैदा होते ही ईश्वर को प्यारा हो गया। सरदारनी रमिन्दर कौर को गहरा सदमा लगा और उनकी स्थिति बिगड़ने लगी। लेकिन किसी के जीवन की गाथस एक बढ़िया हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) ऐसे ही नहीं बनती।
चौहरी चुनौती ओर अग्रिम शिक्षा:
अब सरदार जी के लिए चौहरी चुनौती थी। एक तरफ बीमार पत्नी की देखभाल भी करनी थी तो दूसरी और खुद को भी अकेले ही संभालना था। तीसरी और एफ ऐ (FA) के पेपर देने के लिए शहर से बाहर जाना आवश्यक था लेकिन पत्नी को ऐसी हालत में अकेला भी नहीं छोड़ सकते थे। चौथी मुश्किल यह थी के अब परिवार में कमाने वाला भी उनके आलावा कोई नहीं था।
इन्ही सोच विचार में डूबे सरदार जी ने ईश्वर पर भरोसा कर पेपर देने का फैसला लिया और पत्नी ने भी उनके फैसले में सहयोग दिया।
ईश्वर की कृपा से सभी पेपर अच्छे हुए और सरदार जी को एफ ऐ (FA) की डिग्री मिल गयी। उन दिनों एफ ऐ की डिग्री हुआ करती थी और जिसके पास यह डिग्री होती थी उसे स्नातक अर्थात ग्रेजुएट माना जाता था।
अब स्नातक की डिग्री मिलने से एक अच्छी नौकरी,अच्छे भिविष्य और पत्नी के बेहतर इलाज की सरदार जी के मन में एक उम्मीद जग उठी थी।
पुलिस की नौकरी:
ईश्वस्र की कृपा हुई और जल्दी ही सरदार जी की पुलिस में सरकारी नौकरी मिल गयी।
एक और नवजात बच्चे की मृत्यु:
अभी नौकरी मिले हुए कुछ ही समय हुआ था की पति पत्नी के जीवन में खुशियों ने एक बार फिर दस्तक दी। लेकिन इसलिए बार भी मानो दोनों की खुशियों को कोई बुरी नज़र लग गयी।
इस बार भी बच्चा पैदा होते ही मर गया। एक बार तो सरदारनी रमिन्दर कौर ने किसी तरह खुद को संभाल लिया था। परन्तु इस बार तो जैसे वह अंदर से बुरी तरह टूट गयीं।
परन्तु सरदार जी ना जाने किस मिट्टी का बने थे। इतना संघर्षोंग और कठिनाइयों भरा जीवन होते हुए भी उन्होंने खुद को संभाल रखा था और पत्नी के साथ बाकि परिवार को भी संभाल रखा था और भाई बहनो को ना अपना दुख ज़ाहिर होने देते थे और ना उन्हें मां और पिता की कमी खलने देते थे।
ऐसी बहुत सारी खूबीयां हैँ जो सरदार जी के जीवन की गाथा को हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) बनाती हैँ।
नन्ही परी का जन्म:
इतने संघर्षो होते हुए भी सभी भाई बहनो के शान से विवाह भी किये और रिश्ते भी निभाए। यह घटनाक्रम विवाह के तीन से चार वर्षों में ही हो गए थे।
कुछ लोग होते हैँ जो ज़िन्दगी के इम्तिहान में टूट कर बिखर जाते हैँ और कुछ ऐसे भी होते हैँ जो संघर्ष की आग में तपकर निखर जाते हैँ।
शायद सरदारजी उन्ही मज़बूत इरादों वाले व्यक्ति थे जो संघर्ष करता ही गए और तपकर निखरता ही गए। संभवतः इसीलिए हमें लगता हैँ की सरदार जी की कहानी हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) हैँ जिससे सबको प्रेरणा लेनी चाहिए।
1948 में एक बार फिर से ईश्वर ने दोनों पति पत्नी पर कृपा की और इस बार उनकी झोली एक नन्ही सी सुन्दर परी से भर दी।
अब वो बिटिया कुछ बड़ी हुई तो दोनों पति पत्नी को कुछ उम्मीद बँधी और उनकी ईश्वर में आस्था और भी बढ़ गयी। दोनों पति पत्नी हर पल जीवन के हर सुख और दुख के लिए अब ईश्वर को धन्यवाद देते।
पुत्र का जन्म और सदमा:
लगभग 1950 में ईश्वर ने एक बार फिर से दोनों पति पत्नी की सुन ली और इसलिए बार दोनों की झोली में एक पुत्र डाला।
वह पुत्र अभी वर्ष का ही हुआ की उसे सेहत सम्बन्धी समस्या हो गयी वह दमे की बीमारी का शिकार हो गया। कुछ समय बाद उसके दिल की की धड़कन रुक गयी। यह देखकर सरदारनी रमिन्दर कौर का रो-रो कर कलेजा फटा जा रहा था।
सबके समझने पर भी वह बच्चे को विदा करने राज़ी ना हुई। एक मां के दिल की पुकार ईश्वर कैसे ना सुनता?
दोनों पति पत्नी बच्चे को लेकर अपने इष्ट गुरुदेव के दरबार पहुचे। दरबार में ईश्वर की ऐसी कृपा हुई जिसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता हैँ।
बालक कुछ समय बाद उठ खड़ा हुआ और यह देख दोनों पति पत्नी हैरान भी हुए और खुश भी। दोनों ने गुरुदेव का धन्यवाद किया और घर लौट आएं।
बालिका का नकम जगदीश कौर रखा गया जबकि बालक का नाम अचरज सिंह रखा गया।
और बच्चों का जन्म :
भविष्य में दोनों पति पत्नी को तीन बच्चे और दिए जिनमे दो बालक और एक बालिका हुई। एक बालक का नाम निरलेप सिंह रखा गया और बालिका का नाम गुरजीत कौर रखा गया। अंतिम बालक का नाम सरबजीत सिंह रखा गया।
पांचो बच्चे समय के साथ बड़े हो रहे थे। इस दौरान कश्मीर सिंह ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) का तबादला भी एक शहर से दुसरे शहर ड्यूटी के कारण हो रहा था। कभी पट्टी तो कभी शिमला तो कभी अम्बाला तो कभी चण्डीगढ़ तो कभी जालंधर तो कभी फ़िरोज़पुर।
भारत – चीन और भारत – पाकिस्तान के युद्ध:
यह जीवन का सफर और संघर्षो ही हैँ जो किसी के जीवन की गाथा को हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) बनता हैँ। अभी बच्चे छोटे ही थे और भारत और चीन युद्ध छिड़ गया और कानून व्यवस्था सँभालने के लिए सरदार जी की ड्यूटी लग गयी। यह युद्ध भारत हार गया।
भारत और चीन युद्ध को अभी तीन वर्ष भी नहीं बीते थे की भारत और पाकिस्तान का 1965 में युद्ध हो गया।
इस युद्ध में भी सरदारजी की की कानून व्यववस्था बनाए रखने के लिए ड्यूटी लग गयी। यह युद्ध भारत जीत गया जिसका बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस भयंकर युद्ध में भी कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए बहुत पुलिस वालों की सरकारी ड्यूटी लगायी गयी। उनमें से एक सरदार जी भी थे।
कहा तो यह भी जाता हैँ की एक पाकिस्तानी बम उस मोहल्ले के पास भी गिरा जहाँ सरदार जी और उनके परिवार का निवास स्थान था। लेकिन ईश्वर की कृपा से वह बम फटा ही नहीं। इस युद्ध को भी भारत जीता।
एक तरफ कश्मीर सिंह ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) का युद्ध जैसा संघर्षों से भरा जीवन था तो दूसरी और नाना प्रकार की चुनौतियाँ थी।
बच्चों का जवान होना और उनके विवाह होना:
1948 से 1971 कब आ गया और कब वो नन्ही सी मासूम जगदीश कौर जवान होकर विवाह बाद अपने घर चली गयी किसी को पता ही ना चला। मानो जैसे कल ही की तो बात हैँ।
कुछ साल बाद बड़ा बेटा अचरज भी नामी पहलवान् बन गया। छोटा बेटा निरलेप भी अपने जीवन में व्यस्त हो गया और छोटी बेटी गुरजीत कौर भी अध्यापक बन गयी।
अब तो मानो सरदार जी और उनकी पत्नी की लगभग सारी ज़िम्मेदारियां पूरी हो चली थीं और उनके संघर्ष के दिन समाप्त होने ही वाले थे जीवन में खुशियों की बाहर आने ही वाली थी। लेकिन तभी किस्मत ने ऐसा पलटा मारा की जिसकी किसी को उम्मीद ना थी।
बेटी के विवाहित जीवन में समस्या:
बड़ी बेटी जगदीश कौर के विवाहित जीवन में समस्या उत्पन्न हो गयी। उनके ससुर और सांस को उनके भाइयों ने घर और जायदाद से मिलीभगत करके बेदखल कर दर-दर की ठोंकर खाने को मजबूर कर दिया।
जैसे ही बात सरदार जी को पता चली तो उन्होंने इस संघर्ष में भी अपना पिता का कर्त्तव्य निभाया। हर माह पुत्री को धन और आटा और राशन खुद बस या रेल पर सफर करके देने जाते थे।
बड़े पुत्र का समस्याग्रस्त विवाह:
इसी बीच अचरज सिंह का भी विवाह हो गया। लेकिन अचरज सिंह का विवाहित जीवन भी समस्या से घिरा ही रहा। पहले तीन बच्चे पैदा होते ही मर गए। उन तीनो की मृत्यु से जहाँ एक और निराश आपने पुत्र को संभाला तो बहु को भी संभाला।
अब कहीं ना कहीं सरदार जी और सरदारनी जी को अपनी दादा दादी बनने की उम्मीद धुंधली पडती दिख रही थी।
पोती और पोतों का जन्म:
लेकिन तभी ईश्वर ने अपना चमत्कार दिखाया और अचरज सिंह के घर एक नन्ही परी ने जन्म लिया। वो नन्ही परी बहुत ही सुन्दर थी जिस कारण सरदार जी ने उसका नाम बड़े प्यार से लवली रखा।
कुछ ही समय बाफ 1984 के हिन्दू और सिखों के दंगे दौरान ईश्वर ने अचरज सिंह के घर एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम कबीर रखा गया। बालक का नाम मशहूर अदाकारी कबीर बेदी के नाम पर रखा गया था क्यूंकि जगदीश कौर की सांसु माँ का आदेश था की यदि लड़का हुआ तो उसका नाम कबीर बेदी ही होगा क्यूंकि कबीर बेदी उनका मनपसंद अभिनेता था।
ठीक एक वर्ष बाद अचरज सिंह के घर एक और बालक ने जन्म लिया जिसका नाम स्माइल रखा गया। लेकिन बुरी नज़र तो जैसे सरदार जी और उनके परिवार की खुशियों का पीछा ही नहीं छोड़ रही थी।
बहु की मृत्यु:
स्माइल के जन्म को मुश्किल छह महीने भी नहीं हुए थे की परिवार पर गम का साया टूट पड़ा।
अचरज सिंह की धर्म पत्नी की सेहत सम्बन्धी समस्या से मृत्यु हो गयी जिससे अचरज सिंह बुरी तरह अंदर से टूट गया।
सरदार जी ने 59 साल की इस उम्र में इस सदमे से खुदको संभाला और पुत्र को भी संभाला।
तीन पोते पोतियों के ललन पालन की ज़िम्मेदारी:
दूसरी और छोटा बेटा सरबजीत ईश्वर की कृपा से सरकारी नौकरी लग गया। अब सरदार जी भी पुलिस की सरकारी नौकरी से सेवानिवृत हो चुके थे। उस वक्त उन्हें मात्र 25 रुपये मासिक पेंशन लगी। अब इतनी कम आमदनी में दो बेटियों को सपोर्ट करना और घर खर्च चलना बहुत बड़ी चुनौती थी।
उससे भी बड़ी चुनौती अब जो इस बूढापे में सरदार जी सिंह के कंधों पर आना पड़ी थी वो थी अपने पुत्र अचरज को संभालना और साथ में उसके तीन छोटे छोटे बच्चों का पालन पोषण करना।
लेकिन तभी ईश्वर की कृपा से सरबजीत की सरकारी नौकरी लगने से यह चुनौती कुछ हद तक आसान हो गयी।
लेकिन सरदारजी ने उम्र के इस पड़ाव में भी हार ना मानी और इस बार सभी बच्चों ने सरदार जी का और अपनी मां का साथ दिया ताकि बड़े भाई को संभाला जा सके और उके बच्चे पढ़ लिख कर कुछ बन जाएं। समय बीतने के साथ बड़ा बेटा अचरज संभल गया और उसके बच्चे भी बड़े होने लगे।
बड़े बेटे और सरदारनी जी की मृत्यु का दोहरा सदमा:
कुछ वर्षों बाद छोटे बेटे का भी विवाह हो गया और तो इसके घस्र भी नन्ही परी ने जन्म लिया। सभी उसे बहुत प्यार करते। सब कुछ ठीक ही चल रहा था की किस्मत ने फिर पलटा खाया और अचानक बड़े बेटे अचरज सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी।
इस झटके से अभी परिवार उभर भी नहीं पाया था की लगभग छह महीने के भीतर ही सरदार जी की पत्नी की भी मृत्यु हो गयी। सरदार जी ने दोहरे झटके से खुद को बड़ी हिम्मत के साथ उभारा।
छोटे बेटे और छोटी बेटी की बीमारी और छोटे नाती के साथ दुर्घटना:
अभी कुछ ही समय बीता था की छोटी बेटी गुरजीत कौर को ब्रेन हमेरेज हो गया और दुसरे बेटे को भी दिल का दौरा पड़ा तो छोटे बेटे को मधुमेह रोग ने घर लिया।
बड़ी बेटी के छोटे बेटे को क्रिकेट मैच खेलते वक्त गेंद जा लगी जिससे वह दो साल कोमा में रहा और उसके लगभग 16 ऑपरेशन हुए। फिर कुछ वर्षों बाद बड़ी बेटी के पतिदेव का भी देहांत हो गया।
पिता होने के नाते उसे भी संभाला।
लेकिन सरदार जी की कहानी हिन्दी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) इसीलिए हैँ क्यूंकि इतने संकट और संघर्ष होने के बाद भी जीवन को उन्होंने जोश के साथ जिया।
सरदार जी के दिल की बात :
परिवार के बच्चों में से कबीर उनके दिल के सबसे करीब था। वो अपने दिल की बात उससे ज़रूर करते और कहते की मैंने जीवन में बहुत संघर्ष किया हैँ।
तेरे पिताजी और दादी तेरे सामने इस पुराने किराये के मकान में ही परलोक चले गए। मेरी बस इश्वर से तीन ही प्रार्थनाएं हैँ की अपने जीते जी एक गाड़ी खरीद सकूँ और तुम बच्चों को जीवन में सफल होता देख पाऊं।
तीसरी इच्छा यही हैँ की में किराये के मकान और अस्पताल में नहीं बल्कि अपने खुदके घर में प्राण त्यागु।
सरदारजी ने पोते पोतियों के विवाह भी देख लिए और उनके बच्चे भी होते देख लिए।
सेहत सम्बन्धी समस्या, इच्छाओं की पूर्ती और मृत्यु:
कुछ वर्ष और बीते तो सरदारजी को लगभग पचासी साल की उम्र में हर्णियाँ और पथरी की दोहरी समस्या ने घेर लिया।
लेकिन उससे भी सरदारजी ने पार पाया ठीक होकर अपनी जीवन भर की जमा पूंजी से एक गाडी ली और कुछ और वर्षों बाद 2011 में लोन लेकर अपना घर भी लिया।
घर लेने के लिए लिया क़र्ज़ भी जीते जी उतार दिया। लगभग 100 वर्ष की उम्र में सरदारजी के जीवन का संघर्ष समाप्त हुआ और उन्होंने भारत में पंजाब राज्य के फ़िरोज़पुर ज़िले में स्थित अपने ख़रीदे घर में अंतिम सांस ली और सदा के लिए इश्वर के शरण में चले गए।
आज सरदार कश्मीर सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) चाहे संसार में नहीं हैँ लेकिन उनके बच्चे और पोते पोतियाँ और नाती उनके जीवन से ही प्रेरणा लेते हैँ। जब भी उनपर संकट आता हैँ तो वो यही सोचते हैँ की यदि उनके पिता जी, बड़े पापा, नाना जी होते तो क्या वो हार मानकर बैठ जाते? क्या वो कोई युक्ति लगाते और संकट के सामने डटकर खड़े होते और उसका सामना करके उसे पराजित नहीं करते?
तो मित्रो जीवन में संघस्रश आते रहते हैँ. संघर्ष तो जीवन का अभिन्न भाग हैँ। संघर्ष तो बसों की भाँती आते जाते रहते हैँ. संघर्ष ही हमें बेहतर बनाते हैँ और बहुत कुछ सिखाते हैँ। सरदार कश्मीर सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) की यह संघर्षों से भरी जिंदगी हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) इसकी एक उत्तम उदाहरण हैँ। उन्होंने संघर्षो किये और बेहतर होने की हिम्मत नहीं छोडी। वह जीवन में आगे बढ़ते गए और अपनी सभी इच्छाओ को पूर्ण किया और सभी संघर्षों में विजयश्री प्राप्त की।
आप भी सरदार कश्मीर सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) जी की इस हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) से प्रेरणा लीजिये और संघर्षों से बिना डरे आगे बढिये, बेहतर बनिए। एक दिन सफलता आपके कदम अवश्य चूमेगी।
तो मित्रो आपको सरदार कश्मीरी सिंह बेदी ( Sardar Kashmir Singh Bedi ) जी के संघर्षों और सफलताओं से भरे जीवन की हिंदी मोटिवेशनल स्टोरी (Hindi Motivational Story) कैसी लगी? निचे कमैंट्स बॉक्स में हमें अपने विचार ज़रूर बताइयेगा।